खाना-पीना, सोना-जागना, उठना-बैठना और ये इन्हें मनुष्य जीवन की सामान्य क्रिया माना जाता है। लेकिन इन सबसे भी ज्यादा और आवश्यक सांस लेने को माना जाता है। सांस लेने को तो सरल काम भी नहीं माना जाता, लोगों को
लगता है कि सांस लेना कोई काम ही नहीं है।लेकिन सांस के विषय में ऐसा सोचना इंसान की सबसे बड़ी भूलों में से एक है। योग विज्ञान का यह निश्चित सिद्धांत है कि, सही तरीके से सांस न लेने वाला इंसान अपनी उम्र में से कई साल कम कर लेता है। प्राणायाम का पूरा का पूरा विज्ञान ही सांसों के सही संचालन और नियंत्रण पर टिका हुआ है। प्राणायाम के अभ्यास और साधना के द्वारा शरीर और मन में अनेक आश्चर्यजनक शक्तियों को जगाया जा सकता है। जनरली प्राणायाम का इतना ही अर्थ लगाया जाता है कि घंटा-आधा घंटा किसी आसन पर बैठकर नाक और मुंह से सांस का अभ्यास करना। जबकि असल में प्राणायाम किसी निश्चित समय और स्थान पर बैठकर की जाने वाली क्रिया मात्र ही नहीं है। प्राणायाम का असल मकसद मनुष्य को हर समय सोते-जागते सही और पूर्ण तरीके से सांस लेना सिखाना है। शोध और सर्वे के नतीजे बताते हैं कि आधुनिक जीवन शैली में पला-बढ़ा दुनिया का हर इंसान गलत तरीके से सांस ले रहा है। शोध में पाया गया कि आधुनिक मनुष्य अपने फेंफडों की सांसों को भरने की क्षमता का महज 30 फीसदी ही प्रयोग में ला रहा है। शेष 70 प्रतिशत क्षमता प्रयोग में न आने के कारण बेकार ही पड़ी है। सांसों का मनुष्य की आयु से सीधा संबंध होता है। छोटी, अधूरी और उथली सांस लेने के कारण इंसान अपनी वास्तविक उम्र में से कई साल घटा लेता है।
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14 comments:
आजकल की खान पान और दिनचर्या की बीच शायद ही कोई ठीक ठाक रह पाता हो ...हमारे घर परिवार में भी कोई न कोई हमेशा ही अस्वस्थ बना रहता है ... आपका यह प्रयास बहुत अच्छा लगा..
बहुत बढ़िया स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी ..धन्यवाद
आपके नये ब्लॉग के मंगलमय
सुन्दर भविष्य की
शुभकामनाऐं।
आनन्द विश्वास
स्वास्थ्य एक बहुत अहम् विषय है, आशा है इस विषय पर लाभप्रद जानकारियाँ आपके ब्लॉग के माध्यम से प्राप्त होती रहेंगी|
शुभकामनाएं|
बहुत बढ़िया जानकारी............
आपके उज्जवल और हमारे स्वस्थ भविष्य :-) के लिए आशान्वित....
अनु
आजकल बीमारियाँ तो लगी ही रहती हैँ, ऐसे मेँ इलाज से बेहतर तो बचाव ही है।
निश्चय ही यह ब्लॉग हमारे लिए हितकर साबित होगा।
धन्यवाद
शानदार प्रस्तुति ,आपकी पोस्ट सेपूर्णत : सहमत . ..कृपया यहाँ भी पधारें -
शनिवार, 5 मई 2012
चिकित्सा में विकल्प की आधारभूत आवश्यकता : भाग - १
चिकित्सा में विकल्प की आधारभूत आवश्यकता : भाग - १
उपयोगी पोस्ट। सांस लेना तो हम भूल ही जाते हैं।
कहते हैं बुढ़ापा आ गया, भजन पूजन में ध्यान लगाओ। हमारा मानना है कि बुढ़ापे में सबसे पहले शरीर पर ध्यान देना चाहिए ताकि हाथ पैर सुचारु रूप से चलते रहें।
बहुत उपयोगी ब्लॉग....स्वास्थ्य प्रेमियों के लिए खास यौर पर!
सारा मनोविज्ञान और विज्ञान परोस दिया आपने इस रचना के लघु कलेवर में क्या बात है बेशक से सांस लेने का ढंग व्यक्ति विशेष के जीवन की गुणवता का परिचायक होता है ...शुक्रिया .कृपया यहाँ भी पधारें -
बुधवार, 9 मई 2012
शरीर की कैद में छटपटाता मनो -भौतिक शरीर
http://veerubhai1947.blogspot.in/
आरोग्य समाचार
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_09.हटमल
क्या डायनासौर जलवायु परिवर्तन और खुद अपने विनाश का कारण बने ?
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http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
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बुधवार, 9 मई 2012
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बहुत लाभ प्रद जानकारी ।
बहुत ही बेहतरीन जानकारी बताई है आपने..
इस ओर तो कभी ध्यान ही नहीं गया और शायद कभी जाता भी नहीं...
बहुत ही महत्वपूर्ण पोस्ट:-)
बहुत ही उम्दा तरीके से समझाया है आपने .शुक्रिया .
ram ram bhai
सोमवार, 6 अगस्त 2012
भौतिक और भावजगत(मनो -शरीर ) की सेहत भी जुडी है आपकी रीढ़ से
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